Sunday, July 1, 2018

हरिद्वार का इतिहास HISTORY OF HARIDWAR




नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड राज्य में स्थित
 “हरिद्वार अर्थात हरिद्वार का इतिहास” के बारे में जानकारी देने वाले है , यदि आप हरिद्वार के इतिहास
 के बारे में जानना चाहते है तो इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़े !


हरिद्वार का इतिहास

(HISTORY OF HARIDWAR)


हरिद्वार का इतिहास  बहुत ही पुराना और रहस्य से भरा हुआ है | “हरिद्वार” उत्तराखंड में स्थित 
भारत के सात सबसे पवित्र स्थलों में से एक है | यह बहुत प्राचीन नगरी है और उत्तरी भारत
 में स्थित है | हरिद्वार उत्तराखंड के चार पवित्र चारधाम यात्रा का प्रवेश द्वार भी है | यह भगवान 
शिव की भूमि और भगवान विष्णु की भूमि भी है। इसे सत्ता की भूमि के रूप में भी जाना जाता है | 
मायापुरी शहर को मायापुरी, गंगाद्वार और कपिलास्थान नाम से भी मान्यता प्राप्त है और
 वास्तव में इसका नाम “गेटवे ऑफ़ द गॉड्स” है । यह पवित्र शहर भारत की जटिल संस्कृति और
 प्राचीन सभ्यता का खजाना है | हरिद्वार शिवालिक पहाडियों के कोड में बसा हुआ है |
पवित्र गंगा नदी के किनारे बसे हरिद्वार” का शाब्दिक अर्थ “हरी तक पहुचने का द्वार” है |
हरिद्वार चार प्रमुख स्थलों का प्रवेश द्वार भी है | हिन्दू धर्मं के अनुयायी का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है | प्रसिद्ध तीर्थ स्थान “बद्रीनारायण” तथा “केदारनाथ”धाम “भगवान विष्णु” एवम् “भगवान शिव “ के तीर्थ स्थान 
का रास्ता (मार्ग) हरिद्वार से ही जाता है | इसलिए इस जगह को “हरिद्वार” तथा “हरद्वार” दोनों
 ही नामों से संबोधित किया जाता है |

महाभारत के समय में हरिद्वार को “गंगाद्वार” नाम से वयक्त किया गया है | 

हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम “माया” या “मायापुरी” है | जिसकी सप्तमोक्षदायिनी पुरियो में
गिनती की जाती है | हरिद्वार का एक भाग आज भी “मायापुरी” के नाम से प्रसिद्ध है | यह भी कहा 
जाता है कि पौराणिक समय में समुन्द्र मंथन में अमृत की कुछ बुँदे हरिद्वार में गिर गयी थी | 
इसी कारण हरिद्वार में “कुम्भ का मेला” आयोजित किया जाता है | बारह वर्ष में मनाये जाने वाला 
“कुम्भ के मेले ” का हरिद्वार एक महत्वपूर्ण स्थान है |





हरिद्वार के इतिहास  के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस स्थान पर ऋषि कपिल मुनि ने 
तपस्या की थी | इसलिए हरिद्वार को “कपिलास्थान” नाम से संबोधित किया जाता है |


हरिद्वार को ” हर की पौड़ी ” क्यों कहा जाता है और इसका 

महत्व क्या है ?


हरिद्वार को हमेशा से ही ऋषियों की तपस्या करने के स्थान के रूप में माना जाता रहा है |
 राजा धृतराष्ट्र के मंत्री विदुर ने मंत्री मुनि के स्थान पर ही अध्यन किया था |राजा स्वेत ने 
“हर की पौड़ी” में भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की | जिससे भगवान ब्रह्मा तपस्या को देखकर 
खुश हुए और राजा स्वेत से वरदान मांगने को कहा | राजा ने वरदान में यह माँगा कि “हर की पौड़ी” 
को ईश्वर के नाम से जाना जाए | तब से “हर की पौड़ी” के पानी को “ब्रह्मकुंड” के नाम से जाना जाता है |
 हरिद्वार अपने आप में रोचक एवम् रहस्यभरी जगह है | इस जगह पर हर व्यक्ति का लिखा हुआ
 इतिहास ज्ञात हो जाता है |अपने पूर्वजो की जानकारी , वंशावली का पता करना , हो तो सिर्फ 
हरिद्वार ही एक मात्र ऐसा स्थान है | जो कि यह सब जानकारी प्राप्त करने में मदद कर सके | ( हरिद्वार का इतिहास )

हरिद्वार में “हर की पौड़ी” नामक एक घाट है | घाट को “हर की पौड़ी” नाम से इसलिए बुलाया
 जाता है क्यूंकि इस जगह पर भगवान श्री हरी आये थे और इस स्थान पर उनके चरण पड़े थे | 
यह जगह उन लोगों के लिए आदर्श तीर्थ स्थान है, जो मृत्यु और इच्छा की मुक्ति के बारे में चिंतित हैं।



गंगा नदी को किस कारण धरती पर लाया गया 


राजा सागर के वंशज राजा ने अपने पुरखो के उद्धार के लिए कठिन तपस्या की तथा माँ गंगा को धरती पर लाये |
स्वर्ग से उतरकर माँ गंगा भगवान शिव जी की जटाओ से होते राजा भागीरथ के पीछे पीछे चल दी | 
जब राजा भागीरथ गंगा नदी को लेकर हरिद्वार पहुचे तो सागर पौत्रों के भस्म हुए अवशेषो को गंगा के 
स्पर्श मात्र से मोक्ष प्राप्त हो गया | उस समय से हरिद्वार में अस्थि विसर्जन की परम्परा चलती आ रही है |

उम्मीद करते है कि आपको “हरिद्वार के इतिहास” के बारे में पढ़कर आनंद
 आया होगा |

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