Thursday, June 28, 2018

---- भगवान शिव के विवाह की कथा ----




--- भगवान शिव के विवाह की कथा ---


भगवान शिव और पार्वती की शादी बड़े ही भव्य तरीके से 
आयोजित हुई। पार्वती की तरफ से कई सारे उच्च कुलों के
 राजा-महाराजा और शाही रिश्तेदार
 इस शादी में शामिल हुए, लेकिन शिव की ओर
 से कोई रिश्तेदार नहीं था, क्योंकि
 वे किसी भी परिवार से ताल्लुक नहीं रखते। 
आइये जानते हैं आगे क्या हुआ।

भगवान शिव की शादी में आए हर तरह के प्राणी

जब शिव और पार्वती का विवाह होने वाला था, तो एक बड़ी सुंदर घटना हुई। 
उनकी शादी बहुत ही भव्य पैमाने पर हो रही थी। इससे पहले ऐसी शादी 
कभी नहीं हुई थी। शिव - जो दुनिया के सबसे तेजस्वी प्राणी थे - एक दूसरे 
प्राणी को अपने जीवन का हिस्सा बनाने वाले थे। उनकी शादी में बड़े से बड़े और 
छोटे से छोटे लोग शामिल हुए। सभी देवता तो वहां मौजूद थे ही, साथ ही असुर
 भी वहां पहुंचे। आम तौर पर जहां देवता जाते थे, वहां असुर जाने से मना कर 
देते थे और जहां असुर जाते थे, वहां देवता नहीं जाते थे।

उनकी आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। मगर यह तो शिव का विवाह था,
 इसलिए उन्होंने अपने सारे झगड़े भुलाकर एक बार एक साथ आने का मन 
बनाया। शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर,
 कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए। यहां तक कि
 भूत-पिशाच और विक्षिप्त लोग भी उनके विवाह में मेहमान बन कर पहुंचे।
 यह एक शाही शादी थी, एक राजकुमारी की शादी हो रही थी, इसलिए विवाह
 समारोह से पहले एक अहम समारोह होना था।

भगवान शिव और देवी पार्वती की वंशावली के 

बखान की रस्म

वर-वधू दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। एक राजा के लिए उसकी 
वंशावली सबसे अहम चीज होती है जो उसके जीवन का गौरव होता है। 
तो पार्वती की वंशावली का बखान खूब धूमधाम से किया गया। यह कुछ देर
 तक चलता रहा। आखिरकार जब उन्होंने अपने वंश के गौरव का बखान 
खत्म किया, तो वे उस ओर मुड़े, जिधर वर शिव बैठे हुए थे।
सभी अतिथि इंतजार करने लगे कि वर की ओर से कोई उठकर शिव के वंश
 के गौरव के बारे में बोलेगा मगर किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा। वधू का
 परिवार ताज्जुब करने लगा, ‘क्या उसके खानदान में कोई ऐसा नहीं है जो
 खड़े होकर उसके वंश की महानता के बारे में बता सके?’ मगर वाकई 
कोई नहीं था। वर के माता-पिता, रिश्तेदार या परिवार से कोई वहां नहीं आया
 था क्योंकि उसके परिवार में कोई था ही नहीं। वह सिर्फ अपने साथियों,
 गणों के साथ आया था जो विकृत जीवों की तरह दिखते थे। वे इंसानी 
भाषा तक नहीं बोल पाते थे और अजीब सी बेसुरी आवाजें निकालते थे।
 वे सभी नशे में चूर और विचित्र अवस्थाओं में लग रहे थे।

भगवान शिव ने धारण किया मौन

फिर पार्वती के पिता पर्वत राज ने शिव से अनुरोध किया, ‘कृपया अपने 
वंश के बारे में कुछ बताइए।’ शिव कहीं शून्य में देखते हुए चुपचाप बैठे रहे।
 वह न तो दुल्हन की ओर देख रहे थे, न ही शादी को लेकर उनमें कोई
 उत्साह नजर आ रहा था।
वह बस अपने गणों से घिरे हुए बैठे रहे और शून्य में घूरते रहे। वधू पक्ष 
के लोग बार-बार उनसे यह सवाल पूछते रहे क्योंकि कोई भी अपनी बेटी की
 शादी ऐसे आदमी से नहीं करना चाहेगा, जिसके वंश का अता-पता न हो।
 उन्हें जल्दी थी क्योंकि शादी के लिए शुभ मुहूर्त तेजी से निकला जा रहा था।
 मगर शिव मौन रहे।
समाज के लोग, कुलीन राजा-महाराजा और पंडित बहुत घृणा से शिव की 
ओर देखने लगे और तुरंत फुसफुसाहट शुरू हो गई, ‘इसका वंश क्या है?
 यह बोल क्यों नहीं रहा है? हो सकता है कि इसका परिवार किसी नीची 
जाति का हो और इसे अपने वंश के बारे में बताने में शर्म आ रही हो।’

नारद मुनि ने इशारे से बात समझानी चाही

फिर नारद मुनि, जो उस सभा में मौजूद थे, ने यह सब तमाशा देखकर
 अपनी वीणा उठाई और उसकी एक ही तार खींचते रहे। वह लगातार 
एक ही धुन बजाते रहे – टोइंग टोइंग टोइंग। इससे खीझकर पार्वती के
 पिता पर्वत राज अपना आपा खो बैठे, ‘यह क्या बकवास है? हम वर की 
वंशावली के बारे में सुनना चाहते हैं मगर वह कुछ बोल नहीं रहा। क्या
 मैं अपनी बेटी की शादी ऐसे आदमी से कर दूं? और आप यह खिझाने 
वाला शोर क्यों कर रहे हैं? क्या यह कोई जवाब है?’ नारद ने जवाब दिया, 
‘वर के माता-पिता नहीं हैं।’ राजा ने पूछा, ‘क्या आप यह कहना चाहते
 हैं कि वह अपने माता-पिता के बारे में नहीं जानता

नारद ने सभी को बताया कि भगवान स्वयंभू हैं

‘नहीं, इनके माता-पिता ही नहीं हैं। इनकी कोई विरासत नहीं है।
 इनका कोई गोत्र नहीं है। इसके पास कुछ नहीं है। इनके पास अपने खुद
 के अलावा कुछ नहीं है।’ पूरी सभा चकरा गई। पर्वत राज ने कहा, 
‘हम ऐसे लोगों को जानते हैं जो अपने पिता या माता के बारे में नहीं जानते।
 ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो सकती है। मगर हर कोई किसी न किसी 
से जन्मा है। ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी का कोई पिता 
या मां ही न हो।’नारद ने जवाब दिया, ‘क्योंकि यह स्वयंभू हैं।
 इन्होंने खुद की रचना की है। इनके न तो पिता हैं न माता। 
 इनका न कोई वंश है, न परिवार। यह किसी
 परंपरा से ताल्लुक नहीं रखते और न ही इनके पास कोई राज्य है। इनका
 न तो कोई गोत्र है, और न कोई नक्षत्र। न कोई भाग्यशाली तारा इनकी
 रक्षा करता है। यह इन सब चीजों से परे हैं। यह एक योगी हैं और इन्होंने
 सारे अस्तित्व को अपना एक हिस्सा बना लिया है। इनके लिए सिर्फ 
एक वंश है – ध्वनि। आदि, शून्य प्रकृति ने जब अस्तित्व में आई, तो 
अस्तित्व में आने वाली पहली चीज थी – ध्वनि। इनकी पहली 
अभिव्यक्ति एक ध्वनि के रूप में है। ये सबसे पहले एक ध्वनि
 के रूप में प्रकट हुए। उसके पहले ये कुछ नहीं थे। 
यही वजह है कि मैं यह तार खींच रहा हूं।



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